10 जून 2012

अंजाने रास्ते

अंजाने रास्ते पर बहुत दूर निकल आया
शायद बहुत दूर इतना कि रास्ता अब अंजान न था
अंजान था मैं बहुत दूर निकल आया था
मंजिल कहीं न थी दूर दूर तक
था तो बस एक रास्ता जो शायद अकेला न था
खोने लगा था कुछ , बहुत कुछ पीछे छूट गया था
रास्ता अब अपना सा लगने लगा था
बस चलता चला जा रहा था लेकिन क्यों पता न था
कुछ मोड भी मिले टेडे मेडे , मैं भी उनके साथ मुड गया
चलता चला गया चलता चला गया
शायद रास्ता भी बराबर चल रहा था
मंजिल कहीं न थी , कुछ मोड थे टेडे मेडे
शायद कुछ भूल रहा था पर क्या ये याद न था
रास्ता था अपना , पर अब साथ न था
था मैं अकेला खडा वहीं जहां से चला था
रास्ता अपना न था , या फ़िर मैं चला न था।   

04 जून 2011

सत्याग्रह



भारत को आजादी दिलाने के लिये एक सत्याग्रह किया गया था , अब एक और गांधी पैदा हो गया है ,भारत को एक नई आजादी दिलाने के लिये। पर ये क्या आज के इन भारतीय अंग्रेजों ने तो अपने पूर्वजों को भी पीछे छोड दिया । बाबा रामदेव के शान्तिपूर्वक आन्दोलन का बर्बरता से दमन कर दिया गया । क्या ये वही लोकतंत्र है जिसकी कल्पना आजादी के वक्त की गयी थी । मैं स्वामी रामदेव का कोइ अंधभक्त नहीं हूँ , और ना ही लोकतंत्र का घोर विरोधी । मैं तो बस उस भारत की मूक जनता की आवाज हूँ जिसकी धीमी आवाज को कोई सुनता नहीं है और जब वो एक साथ बोलतें हैं तो उनकी आवाज को शोर समझ कर दबा दिया जाता है। बडे बडे औद्योगिक घरानों को फ़ायदा पहुंचाने के लिये लाचार किसान की जमीन को कब्जाया जाता है । अगर कोई खडा होकर प्रतिरोधकरता है उसे कुचल दिया जाता है । जैसे कि उसका इस लोकतंत्र में कोइ आस्तित्व ही नहीं है ,क्या अंतर है अंग्रजों और इन नेताओं में जो सरकार की आढ में तानाशाही चलाते हैं ।
आजादी के वक्त राजशाही को खत्म किया गया क्योंकि वे निरंकुश थे और शासन उत्तराधिकार पर चलता था ,पर इन्होंने तो निरंकुशता की हदें पार कर दीं और जहाँ तक बात रही उत्तराधिकार की तो आजादीके बाद किसने सबसे ज्यादा राज किया , समूचा नेहरू वंश ही चल रहा है (गांधी की आढ में) ।बात ये है कि इस समस्या का कोई समाधान नहीं है, हम ही तो हैं जो इन्हें विजेता बना कर इतने अधिकार देते हैं फ़िर बाद में चिल्लाते रहते हैं कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है । खैर जिनके उपर कोई प्रत्यक्ष आपदा नहीं आ रही है उन्हे कोई फ़र्क नहीं पडता । हम लोग कमायें
कर जमा करें उसे ये लोग विकास के नाम पर विदेश में जमा करें , और हम ये पूछ भी
नहीं सकते कि वो कहाँ है , उस कालेधन को वापस क्यों नहीं ला सकते । आखिर वक्त आ
गया है ये साबित करने का कि ये नेता हमारे नौकर हैं इन्हें वो करना चाहिये जो देश के हित
हो , एसी व्यवस्था स्थापित होनी चाहिये कि एक साधारण सा नागरिक भी इन प्रतिनिधियों का
गिरेहबान पकड कर हिसाब किताब ले सके ।ये सब हमें ही करना होगा , छुब्द होकर बैठने से
काम नहीं चलेगा , विरोध कीजिये और कभी संतुष्ट मत होइये क्योंकि ये क्षणिक संतुष्टी ही
हमारी लाचारी मे बदल जाती है ।
जय हिंद !!!!!!!!!!!!!!!!

30 दिसंबर 2010

नववर्ष 2011


एक लम्बे अर्से के बाद नई पोस्ट लिख राहा हूँ , कुछ समय से जीवन में बडे नाटकीय से घटनाक्रम चल रहे थे । इस कारण थोडा विचलित था । परिस्थतियाँ ही तो हैं जो जीवन बनातीं हैं , हमारे निर्णयों से संचालित होती है । खैर नववर्ष का आगमन हो रहा है , वर्ष २०११ सभी के जीवन में खुशियों , सफ़लता व समृद्धि लाने वाला हो । मैंने भी नऎ साल के लिये कुछ संकल्प लिये हैं ।उन्हें यहाँ सार्वजनिक करना ठीक नहीं है ।
बीता हुआ वक्त हमें क्या सिखा कर जाता है ? शायद कुछ सबक हमें उन से शिक्षा लेनी चाहिये ।
आप अपने जीने के तरीके को बदल सकते हैं , अपने विचारों को अधिक उन्नत बना सकते हैं,
अच्छी प्रेरणादाई पुस्तकें पढने की योजना बना सकते हैं , अपनी बुरी आदतों को छोड्ने का
संकल्प ले सकते हैं । सच मानिये इससे बेहतर तरीका नही हो सकता नववर्ष का स्वागत
करने का ।
जब कभी भी आप अपने आप को असहाय मह्सूस करें , जीवन अकारण प्रतीत होता हो तो
अपने माता पिता की तस्वीर देखें , उनकी आँखों मे आपके प्रति स्नेह , प्रेम के साथ साथ
उम्मीदों की रेखायें भी दिखाई देंगी । यही आँखे आपको जीवन में कुछ कर गुजरने की प्रेरणा
देती हैं ।
जब कभी भी आपका अपने पर से विश्वास हट जाये , उन महान लोगों की जीवनी पढें जिन्होंने
अभावों में रह कर भी सफ़लता प्राप्त की और इस संसार को बहुत कुछ दिया । आप शुरूआत
महात्मा गांधी व रामप्रसाद बिस्मिल की जीवनी से कर सकते हैं । व्यक्तिगत जीवन में मेरे दादा जी मेरी प्रेरणा के’ स्त्रोत रहे हैं उनके अलावा मुझे भगत सिंह ,स्टीफ़न हौकिंग्स , अब्दुल कलाम के
जीवन भी प्रेरणा मिली ।
जब आप पायें कि जीवन अत्यंत जटिल हो गया है , आप व्यस्तता के बुखार से ग्रसित हो रहे हैं
तब आप उनके साथ कुछ वक्त गुजारें जिनसे आप प्यार करते हैं, ये वाकई आपको तरोताज़ा कर
देगा ।
जब आप पायें कि परिस्थितियाँ अब आपके नियंत्रण में नहीं हैं, तब समय निकाल कर मंदिर
जायें , अपने आपको अपनी समस्त परेशानियों समेत भगवान के आगे समर्पित कर दें और
भरोसा रखें कि सब कुछ अच्छा हो जाएगा ।

24 अक्तूबर 2010

मध्यांतर

क्या गरीब को इस दुनियाँ में,
जीने का अधिकार नहीं है ।
पग पग पर मैं मार खा रहा
कहते ये कुछ मार नहीं है ॥
तू रिक्शे मैं बैठ रहा ,
मैं हूँ रिक्शे को खींच रहा।
उचित मूल्य मुझे नहीं मिलता,
तू है पैसै को भींच रहा ॥
उद्योग अनेक लगे तेरे,
मुझको निजी श्रमिक बतलाता ।
अपार धन संग्रहित तुझ पर,
मुझे कोई सारोकार नहीं है
क्या गरीब को इस दुनियाँ में,
जीने का अधिकार नहीं है ॥
एअर कंडीशन बंगले तुम्हारे,
मुझे फ़ुट्पाथ नसीब नहीं है।
हीटर गर्म करें तुझको ,
मुझे अलाव नसीब नहीं है ॥
श्वेत वस्त्र मंच के ऊपर ,
सम्भाषित करता निज ब्यान ।
मैं किस मुख से उच्चारित कर दूँ ,
यह सरकार ,सरकार नहीं है ,
क्या गरीब को इस दुनियाँ में,
जीने का अधिकार नहीं है ॥
अग्रसर तू उन्नति पथ पर,
मैं हूँ पीछे को भाग रहा ।
मध्यांतर इतना गहन हुआ,
फ़िर भी नहीं कोई जाग रहा ॥
यदि यही क्रम उन्नत पथ का,
पौराणिक बिन्दु सही होंगे ।
कलियुग का अंत निकट मैं है,
न हम ही होंगें, न तुम ही होगे ॥
जीवन मरण विधि विधान है,
’ब्रजेश’ किसी का अधिकार नहीं है,
क्या गरीब को इस दुनियाँ में,
जीने का अधिकार नहीं है ॥

18 अक्तूबर 2010

खुद रो जाता हूँ ।





हो तुम दूर मुझसे , मिल नहीं पाता हूँ ।
बातें तो हो जातीं हैं लेकिन देख नहीं पाता हूँ ।
बिन तुम्हारे , यादों के सहारे पागल सा हो जाता हूँ ।
ख्वाबों के आशियाँ से उन पलों को खोज लाता हूँ
जहाँ अपनी रूह के नज़दीक तुम्हें पाता हूँ ।
सुबह सुबह मंदी धूप में चलते देख
तुम्हारी परछाई पीछे पीछे चल देता हूँ , और
तुम्हें न पाकर ठगा सा रह जाता हूँ ।
चला जाता उन हलके हलके सफ़ेद बादलों में
जहाँ खडी हो तुम लिये अपनी बाँहों का हार ,
लेकिन तुम्हें वहाँ न पाकर मायूस सा हो जाता हूँ ।
पाकर नज़दीक तुम्हें छूने की मैं कोशिश करता हूँ
हाथ आती है एक बेदर्द हवा और मैं तन्हा रह जाता हूँ ।
देखता हूँ तुम्हारी तस्वीर को , तुममें खुद को पाता हूँ
आइने में अक्स भी तुम्हारा ही बनाता हूँ ।
जिन रास्तों पर कभी चले थे साथ साथ , हाथों में लिये हाथ
अब वहाँ से अकेले गुजर जाता हूँ ।
जिन रास्तों पर करता था तुम्हरा इंतज़ार
उन रास्तों को भी तुम्हारी राह तकता हुआ पाता हूँ ।
लेता हूँ जब साँसे सिर्फ़ जीने के लिये
ज़िन्दगी को तुम्हारा कर्जदार पाता हूँ ।
दूर खडी जब देखती हो मेरी ओर सज़ल आँखों से
पास आकर आँसू पौंछ्ने की कोशिश करता हूँ
और खुद रो जाता हूँ ।

11 अक्तूबर 2010

स्तुति


जय जगदम्बे अम्बिका,
हरायु मात क्लेश।
कलम विराजो सरस्वती
ब्रह्मा विष्णु महेश।।
ब्रजेश ह्र्दय से आस तुम्हारी करता ।
शीश झुकाऊँ चरण में, ध्यान तेरा ही धरता॥
पथवारी , व्रतवारी और सुमिरू कोटावारी ।
बुद्धि विवेक संकुचित , है शब्दों से लाचारी ॥
पवनपुत्र शक्ति दीजै , काली माँ करि रक्षा ।
अन्तृद्वंद मचा भरत में , और न लेउ परीक्षा॥

10 अक्तूबर 2010

मेरे दादा जी



मेरे आदर्श मेरे दादा जी हैं । जो कि एक सेवानिवृत पुलिस
अधिकारी हैं । मैं यहाँ उनके द्वारा रचित हास्य कविताऎं
, व्यंग कविताऎं उनके उपनाम " ब्रजेश " के अन्तर्गत
प्रस्तुत कर रहा हूँ , आशा है आप पसन्द करेंगे.............

सर्वप्रथम प्रस्तुत है उनका परिचय (वाह री ब्लाग दुनिया हम
जिनके परिचय के मोहताज़ हैं , उनका परिचय करा रहें हैं...)
उन्ही के शब्दों में.............

उत्तर प्रदेश के मथुरा नगर के चौरासी कोस की परिधी से
आच्छादित ब्रज के गाँव भगतुआ डाकखाना कोटा परगना
हाथरस जनपद महामाया नगर के एक साधारण कृषक परिवार
में स्वर्गीय श्री ज्योतिराम जाट के यँहा ३० जनवरी १९४० को
जन्म हुआ । गणेश सिंह इंटर कालेज मुरसान से सन १९५९
में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर तदुपरान्त १९६० से
उत्तर प्रदेश पुलिस में आरक्षी पद पर सेवा प्रारम्भ की तथा
वर्ष १९७४ में सब इन्सपेक्टर पद पर प्रोन्नत हुआ ।सन १९९८
में मेरठ परिक्षेत्र के उपमहानिरीक्षक के रीडर पद से सेवानिवृत
हुआ । शिक्षा ग्रहण करने में उत्सुकता के कारण वर्ष १९८६
में बी ए तथा वर्ष १९९३ में एल एल बी की परीक्षा चौधरी चरण
सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से प्राप्त उत्तीर्ण की ।
प्रारम्भ से ही साहित्य , पारिवारिकता एवं समाजिकता से
सम्बद्ध रहे । कर्तव्य ही पूजा है तथा पुलिस वर्दी एवं शासन
के सर पर ताज की मर्यादा एवं आन को सुरक्षित रखने के
निमित्त सर्वदा चिंतित रहे । जीवन अत्यंत मितव्ययी एवं
शालीनता से यापन करते हुए अनुशासन जीवन का मूलधार
रहा । वर्तमान में गाँव में रहकर धर्म कर्म में संलग्न हैं ।

बीरी सिंह "ब्रजेश"