01 अक्तूबर 2010

सात मई 2009

कुछ समय से हम प्रेम पथ से थोडा सा विचलित हो गये थे...
लीजिये एक और कविता प्रेम को समर्पित.......................

हमारे यँहा काव्य (पद्य) से सम्बन्धित प्रसंग दिया जाताहै.........
यँहा एक हताश प्रेमी के आकर्षण और उसकी असमंजस की
स्थति का चित्रण है जो अपनी भाव विभोर नायिका के पीछे
जा रहा है पूरे रास्ते वो उससे अपने मन की बात नहीं
कह पाता है..............

मैं पागल सा खो गय था कहीं
उस गुलाबी अभ्र में जो था तुममें कहीं
उन आँखों में जो थी सपनीली
उस अहसास में जिसे जलाया था मैंने
पर दी थी आग तूने अपनी गर्माहट से
मिली थी तू पर देख ना पाया उस
तपिश को जो दबी सी थी कहीं
तू थी अकेली बोल ना पाया था कुछ
डर्गया था कहीं ये ख्वाब सच ना हों
मंजिल नज़दीक थी डर गया था कहीं
राह खत्म ना हो जायें
क्योंकि चलतीं हैं रहें मंजिल नहीं
दिखते हैं ख्वाब हकीकत नहीं




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आखिर भारत जीत गया!!!!!!!!!

आखिर तनाव का वो माहौल , वो वक्त गुजर ही गया...........
हमने सच कर दिखाया की कैसे हम धुंधले अतीत की बुनियाद
पर ,वर्तमान परिस्थितियों को समझते हुए अपनी आने वाली पीढी को विवाद रहित भविष्य दे सकते हैं ।
मुझे लगता है कि कल जिस तनाव के साये से भारत गुजरा है ,
प्रत्येक व्यक्ति समाचार चैनलों पर, रेडियो समाचारों पर झुका
पडा था , क्या वो इस फ़ैसले का इन्तजार कर रहा था कि
हिन्दू जीतेंगे या मुसलमान ?
नहीं.................
वो इन्तजार कर रहा था कि कौन पहले हारेगा..............
लेकिन हमारी न्यायपालिका ने ये सिद्ध कर दिया कि हम एक
लोकतन्त्र हैं और आज भी भारत के अंदर अल्पसंख्य्कों के
अधिकार सुरछित हैं....................
हिन्दू और मुसलमान दोनों ही जीते..........कोइ नहीं हारा
भारत जीत गया.............
कितना भाव विभोर द्रश्य होगा वो जब पाक नमाज़ की आज़ानें
मंदिर के घंटों के साथ गूँज़ा करेंगी...............
ये राम और रहीम के मिलन का तीर्थ स्थल होगा
मेरी हिन्दू भाइयों से गुजारिश है कि वे मस्जिद निर्माण में सामूहिक श्रमदान करें..............मेरी मुस्लिम भाइयों से गुजारिश है कि वे मंदिर निर्माण में सामूहिक श्रमदान करें..............
मेरा ये भारत सदैव सभी खुशहली और अमन के रास्ते पर चले.....................

आमीन