08 अक्तूबर 2010

कश्मकश................


पहले सारे प्यार इकतरफ़ा ही होते हैं (खैर बाद में दोतरफ़ा भी हो
जाते हैं) तो प्रस्तुत एक प्रेमी की कश्मकश................





तुमको उगते देखा था नये सवेरे की तरह
ढलते भी देखा पुरानी शाम की तरह
पाया था नज़दीक तुमको सांसों के जितना
देखा था दूर भी सितारों तक
खोजा था तुमको तन्हाई में भी
सोचा था तुमको सोती हुई रातों में भी
सोचा था आज खत्म कर दुंगा इस सिलसिले को
दफ़ना दुंगा सारी यादों को दर्द की ज़मीन में कहीं
दबा दुंगा सारे अरमानों को रखकर दिल पर पत्थर
ना आउंगा सामने बन कर एक तस्वीर
रह जाउंगा ख्वाबों में सिर्फ़ एक परछाई बन कर
ना बहाउंगा एक अश्क भी तुम्हारे लिये
रोक लुंगा उस सैलाब को भी खुद की तरह

1 टिप्पणी:

गजेन्द्र सिंह ने कहा…
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