04 जून 2011

सत्याग्रह



भारत को आजादी दिलाने के लिये एक सत्याग्रह किया गया था , अब एक और गांधी पैदा हो गया है ,भारत को एक नई आजादी दिलाने के लिये। पर ये क्या आज के इन भारतीय अंग्रेजों ने तो अपने पूर्वजों को भी पीछे छोड दिया । बाबा रामदेव के शान्तिपूर्वक आन्दोलन का बर्बरता से दमन कर दिया गया । क्या ये वही लोकतंत्र है जिसकी कल्पना आजादी के वक्त की गयी थी । मैं स्वामी रामदेव का कोइ अंधभक्त नहीं हूँ , और ना ही लोकतंत्र का घोर विरोधी । मैं तो बस उस भारत की मूक जनता की आवाज हूँ जिसकी धीमी आवाज को कोई सुनता नहीं है और जब वो एक साथ बोलतें हैं तो उनकी आवाज को शोर समझ कर दबा दिया जाता है। बडे बडे औद्योगिक घरानों को फ़ायदा पहुंचाने के लिये लाचार किसान की जमीन को कब्जाया जाता है । अगर कोई खडा होकर प्रतिरोधकरता है उसे कुचल दिया जाता है । जैसे कि उसका इस लोकतंत्र में कोइ आस्तित्व ही नहीं है ,क्या अंतर है अंग्रजों और इन नेताओं में जो सरकार की आढ में तानाशाही चलाते हैं ।
आजादी के वक्त राजशाही को खत्म किया गया क्योंकि वे निरंकुश थे और शासन उत्तराधिकार पर चलता था ,पर इन्होंने तो निरंकुशता की हदें पार कर दीं और जहाँ तक बात रही उत्तराधिकार की तो आजादीके बाद किसने सबसे ज्यादा राज किया , समूचा नेहरू वंश ही चल रहा है (गांधी की आढ में) ।बात ये है कि इस समस्या का कोई समाधान नहीं है, हम ही तो हैं जो इन्हें विजेता बना कर इतने अधिकार देते हैं फ़िर बाद में चिल्लाते रहते हैं कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है । खैर जिनके उपर कोई प्रत्यक्ष आपदा नहीं आ रही है उन्हे कोई फ़र्क नहीं पडता । हम लोग कमायें
कर जमा करें उसे ये लोग विकास के नाम पर विदेश में जमा करें , और हम ये पूछ भी
नहीं सकते कि वो कहाँ है , उस कालेधन को वापस क्यों नहीं ला सकते । आखिर वक्त आ
गया है ये साबित करने का कि ये नेता हमारे नौकर हैं इन्हें वो करना चाहिये जो देश के हित
हो , एसी व्यवस्था स्थापित होनी चाहिये कि एक साधारण सा नागरिक भी इन प्रतिनिधियों का
गिरेहबान पकड कर हिसाब किताब ले सके ।ये सब हमें ही करना होगा , छुब्द होकर बैठने से
काम नहीं चलेगा , विरोध कीजिये और कभी संतुष्ट मत होइये क्योंकि ये क्षणिक संतुष्टी ही
हमारी लाचारी मे बदल जाती है ।
जय हिंद !!!!!!!!!!!!!!!!

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