02 अक्तूबर 2010

लालबहादुर शास्त्री


अपने एक मित्र माननीय सुधीर चौधरी जी की आलोचना से
त्रस्त होकर मैं उनके कुछ विचार यहाँ प्रस्तुत करता हूँ ।
लाल बहादुर शास्त्री जी हमारे देश के कर्मठ , सच्चे एवं
ईमानदार प्रधान मंत्री थे । वे जीवन पर्यन्त देश की समस्यओं
के साथ संघर्षरत रहे.....और इसी संघर्ष में उन्होनें अपने प्राणों की आहुति दी । अपने व्यक्तिगत जीवन में अशांति होते हुए भी
उन्होने देश में शांति की स्थापना में लगे रहे........
वे आज भी अपने देश में अपेक्षित हैं.....................
आइये उस धरती के लाल को नमन करें.........
प्रस्तुत हैं कुछ उनसे समबन्धित कुछ प्रेरक प्रसंग॥
किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।

उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।

उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।

उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।

छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।

बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।

नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!”

यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।”

माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।

उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो।

उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।


गांधी जी

आज भारत में गांधी जी के सिद्धांतों की कितनी
प्रासंगिकता है ?
अक्सर इस प्रश्न पर हम विचार २ अक्टुबर को ही करते
हैं या तब करते हैं जब कोइ फ़िल्मकार गांधी विचारधारा
पर फ़िल्म बनाता है ।

खैर मैं इतना महान तो नहीं कि गांधी दर्शन की समीछा
कर सकूँ । लेकिन क्या ये सच है कि है कि हमें उनकी
ज़रूरत है या सिर्फ़ सार्वजनिक अवकाश में मंच पर एक
औपचारिक संगोष्ठी आयोजित कर हम अपने दायित्व से
छुट्कारा पा लेते हैं ।

गांधी जी के बारे में नई पीढी से बात करो तो वे उन्हें
नापसंद करते हैं , और कह्ते हैं कि वे कायर थे क्योंकि
उन्होंने अहिंसा का मार्ग अपनाया । उन्हें सुभाष चन्द्र बोस
, भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद ज्यादा पसन्द हैं वे
१८५७ के नायकों को अपना आदर्श मान सक्ते हैं लेकिन
गांधी जी को नहीं । इसके पीछे कारण ये नहीं कि गांधी
जी में उनकी विचारधारा में कोइ खोट है , बल्कि गांधी जी
के सपनों का भारत (रामराज्य) पीछे रह गया , वहीं
उनकी मृत्यु के साथ । तब भी वे अकेले थे आज भी वे
अकेले हैं , और भरत वहाँ से यहाँ तक एक बिन माँ के
बेटे की तरह आया है , ममता ,स्नेह व मूल्यों से वंचित ।
बिना सही पालन पोषण के ये मानसिक रोगी बन गया है
और इसके बाप (गांधी जी के अघोषित राजनैतिक उत्तराधिकारी) को कुछ होश नहीं है ।

आज हमारे देश को गांधी जी की सबसे ज्यादा ज़्रूरूरत है ।
हमारे सामने पुन: विभाजन जैसी स्थतियां पैदा हो रही हैं
अलगाववाद एक प्रमुख वैचारिक समस्या बन चुका है चाहे वो
कश्मीर को लेकर हो या नक्सलवाद को लेकर ।
आज हमारे पास अहिंसा रूपी संजीवनी औषधि तो है परन्तु
गांधी जी जैसा वैद्य नहीं जो इस बीमार देश की नब्ज़ पकड
सके................



कृपया अपने विचार दें.............