29 सितंबर 2010

जीवन चलने का नाम

सभी को सादर प्राणाम !
ब्लागों की दुनिया में आगमन कविता के साथ
आआपको पसन्द आयेगी यदि पसन्द ना भी आये तो क्रपया निराश मत कीजियेगा शा है कि क्योंकि ये ह्रदय के उदगार हैं

तेरे अगोश मैं गुजर गयी वो रात यूँ ही
तुने सोने ना दिया आखिर सोना किसे था
पाना था तुझे तेरे अह्सास के लिये
जागा था रात भर तेरे नूर को आखों में भरने के लिये
तेरी आंखे भी देखती थीं कभी मुझ्को कभी शून्य में
शायद खोजती थीं वो सब जो मैंने पा लिया था
और उसका था कभी , अहसास था तुझे भी
कि पाया था तुझको बहुत सन्घर्ष के बाद तभी तो
तेरे हाथ रेंगते थे मेरे शानों पर , बताने मुझे
कि तू मेरे साथ है , शायद इससे बेहतर तरीका ना था
जताने का कि इस गर्माहट में छुपे हुये हैं अरमान तेरे प्यार के
कुछ इस अन्दाज में चूमा था मेरी पेशनी को तूने कि
उतर गया था अन्दर तक तेरे लबों का
कह रहीं थीं तेरी आंखे मुझसे जो ज़ुबां न कह सकी थी
बता रहीं थीं कि तूने माना था फ़ैसला किस्मत का
देखतीं थीं मेरी तरफ़ ऎसे, जैसे कि देखा ना था मुझे कभी
सांसे चल रहीं थीं इस कदर मानो रोक रहीं हों किसी तूफ़ान को
दूरीयां दम तोड रहीं थीं हर पल जैसे खत्म हो जाना चाह्तीं हों
प्यार का सैलाब सा उमड आता था , तुम्हारे हर स्पर्श में
दोनो जिस्म एक जान हो जाना चाह्ते थे, जैसे कि
दोनों में एक ही जान हो, अधूरे हों एक दुजे के बिना

2 टिप्‍पणियां:

gyaneshwaari singh ने कहा…
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उपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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